[ सरसों की फसल में लगने वाले रोग 2024 ] जानिए सरसों में कीटनाशक की दवा, प्रमुख रोग, लक्षण एवं रोकथाम | Mustard Disease and Pests

Last Updated on February 19, 2024 by krishisahara

देश में तिलहन फसलों की खेती और भाव को लेकर किसान भाई काफी जागरूक रहते है | सरसों फसल की उन्नत खेती से किसान भाई कर सकते है, अपने मुनाफे को दोगुना | किसी भी फसल की खेती से अच्छी आय कमाने के लिए अच्छी देखरेख और कीट-रोग के प्रति सावधानियों की जरूरत होती है | आज हम बात करेंगे – सरसों की फसल में लगने वाले रोग को लेकर विस्तृत चर्चा –

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सरसों की फसल में लगने वाले रोग

इस लेख के माध्यम से आप जानोगे – सरसों में झुलसा रोग? सरसों का माहूं (चैपा /मोयला /एफिडा) कीट? सरसों की फसल में चितकबरा कीट? सरसों की फसल में लगने वाले रोग? सरसों की फसल की बढ़वार का नहीं होना? सरसों के बीजों को उपचारित करने के फायदे –

सरसों की फसल में लगने वाले रोग 2024 ?

रबी सीजन की तिलहनी फसलों में कई प्रकार के रोंग समस्याओ का प्रभाव देखने को मिलता है | बात करेंगे सरसों की फसल में सर्वोधिक लगने वाले रोगों के लक्षण, उपाय प्रबंधन –

सरसों में झुलसा रोग –

इस रोग के शुरुआती लक्षणों में सरसो की पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे बनने लगते है| अधिक प्रभावित फसल की पत्तियों के बीच में छेद बनने लग जाते है| इस रोग का सीधा प्रभाव पैदावार पर देखने को मिलता है | फलियों के दाने में तेल की मात्रा का कम होना आदि प्रभाव देखने को मिलते है |

रोकथाम – बुआई के समय उपचारित बीजों का प्रयोग करें, फसल में इस रोग का प्रभाव दिखाई दे तो, मेटालेक्सल 4% + मेंकोजेब 64% WP @600 ग्राम, या मेटालेक्सल 8%+ मेंकोजेब 64% WP @ 500 ग्राम प्रति एकड़ की दर से 200 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए |

सरसों का सफेद रोली या सफ़ेद गेरुआ रोग –

यह रोग एल्बुगो कैंडिडा नामक फफूंद के कारण फैलता है | सरसों फसल में सफेद रोली या सफ़ेद गेरुआ रोग से तना और फलियों पर फफोले बन जाते है, जिसके कारण बीज दाना नही बन पाते है|

रोकथाम – यदि आपको अपनी फसल पर यह लक्षण दिखाई दे, तो आपको रीडोमिल एमजेड 72 डब्ल्यू पी फफुंदीनाशक के 0.25% घोल का छिड़काव कर सकते है |

सरसों का माहूं (चैपा /मोयला /एफिडा) कीट –

यह रोग सरसों फसल को सबसे ज्यादा नुकसान पहुँचा सकता है | यह रोग देरी से बुआई होने वाली फसलों में सर्वाधिक देखने को मिलता है | पाले के समय अधिक आद्र मौसम परिवर्तन के कारण भी हो सकता है|

रोकथाम – इस रोग को रोकथाम के लिए किसान भाई बायोएंजेंट वर्टीसिलियम लिकनाई एक किलोग्राम प्रति हेक्टेयर या मिथाइल डिमेटोन 25 ईसी या फिर दाईमिथोएट 500 ml/हेक्टेयर की दर से सप्ताह के अंतराल में छिड़काव कर सकते है |

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सरसों फसल का तना गलन रोग या स्टेम रोट रोग –

सरसो की पत्तियों और फलियों पर तना गलन रोग या स्टेम रोट रोग सर्वाधिक देखने को मिलता है | शुरुआत में पौधे के तने की सतह से थोड़ा उर जलासिक्त धब्बों के रूप में होता है | फिर यह तने को अधिक रोग ग्रसित करके पूरे पौधे को मुरझा कर देते है | इस रोग से अधिक प्रभावित फसल के पौधे सूखने लगते है |

रोकथाम – इस रोग को नियंत्रण करने के लिए आपको बेनोमिल 0.2% या बाविस्टिन 0.05% कवकनाशक दवाई के घोल का छिड़काव पौधे पर कर देना है |

सरसों की फसल में चितकबरा कीट –

यह कीट पौधे से रस चूसकर वृद्धि दर और अंत में पौधे को नष्ट कर देती है| यह किट फसल को बुआई के समय और कटाई के समय ज्यादा नुकसान करती है| फसल के बचाव के लिए मिट्टी में लट-कीट का समय पर उपाय करना चाहिए |

रोकथाम – इन कीटों की रोकथाम के लिए मेलाथियान 50 ईसी दवा की 500 ml मात्रा को 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर की दर से इसका छिड़काव कर सकते है |

सरसों की फसल में लगने वाले रोग

छाछिया रोग या पाउडर मिल्ड्यू –

सरसों फसल में यह एक कवक जनित रोग है, जो की शुरुआत में पौधे की पत्तियां और टहनियों पर मटमेले सफेद चूर्ण के रूप में दिखाई देती है | यह समस्या कुछ समय के बाद में संपूर्ण पौधे पर फेल जाती है| इसके कारण पत्तियां पीली होकर, कुछ समय के बाद नीचे जमीन पर गिरने लग जाती है|

रोकथाम – नियंत्रण के लिए आपको 0.2% घुलनशील गंधक का छिड़काव करना होगा या फिर केराथीयान एलसी का 0.1% घोल का छिड़काव 15 दिनों के अंतराल में करना है|

सरसों की पत्ती धब्बा या लीप स्पोट बीमारी –

इस रोग से ग्रसित सरसो की पत्तियां पर छोटे-छोटे गहरे भूरे गोल धब्बे बनने लगते है| फिर कुछ समय के बाद में इन धब्बे का आकार बड़ा हो जाता है| इस धब्बों में गोल छल्ले साफ दिखाई देते है| कुछ समय के बाद इस रोग के कारण सरसो की पत्तियां पौधे से अलग हो जाती है|

सरसों की फसल की बढ़वार नहीं होना ?

कई बार ऐसा होता है की हमारी सरसो की फसल समय के अनुसार विकास नही कर पाती है, इसका मुख्य कारण है की – आपकी फसल में शायद कोई रोग लगा है | इसके लिए रोग की समय पर पहचान करके उपचार करना चाहिए |

सरसों फसल की बढ़वार को प्रभावित करने वाले कारक – खेत का उपजाऊपन नहीं होना, बिना उपचारित बीज बोना, देरी या जल्दी बुवाई करना, सिंचाई अंतराल, मौसम परिवर्तन, अधिक पाला/सर्दी, अधिक रासायनिक खाद का होने से भी सरसों फसल की बढ़वार को रोक सकती है |

सरसों के बीजों को उपचारित करने के फायदे ?

यदि आप सरसो की बुआई से पूर्व, एक बार बीजोपचार कर लेते है, तो इससे आपके 100% बीज का उगाव होगा | पूरी फसल के समय रोग और कीटो लगने की समस्या काफी हद तक कम हो जाती है | उन्नत ओर उपचारित बीजों वाली फसल की पैदावार में अच्छा असर देखने को मिलता है |

सरसों फसल के फूल गिरना ?

अधिक पाला/सर्दी के समय या अधिक बारिश के समय फूलों का झड़ना शुरू हो जाता है| कई परिस्थतियों में किट लग जाए या फिर सिंचाई में कमी हो तब सरसो के फुल गिराना शुरू हो जाता है|

सरसों में सफेद जंग लगने का क्या कारण है?

सरसों में सफेद जंग एक फफूंद जनित रोग है| नम जलवायु के समय इस रोग के बढ़ने के कारण ज्यादा बन जाते है, इसके प्रभाव से फसल की पैदावार घट जाती है | – सरसों फसल रोग pdf

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