[ प्राकृतिक खेती कैसे करें 2024 ] जानिए महत्व और प्रकार, प्राकृतिक खेती क्या है | Natural Farming

Last Updated on January 19, 2024 by krishisahara

प्राकृतिक खेती क्या है | नेचुरल खेती पर सरकार द्वारा सहायता | prakritik kheti | प्राकृतिक खेती कैसे करें | प्राकृतिक खेती के लाभ | नेचुरल खेती

वर्तमान में खेती के तरीकों और उपज, उत्पादन, खेती की लागत को देखते हुए बहुत से किसान प्राकृतिक खेती से जुड़ रहे है | प्राकृतिक खेती, खेती करने का वो तरीका है – जो पुराने समय से चल रहा था| इस खेती के कुछ नए स्वरूप भी आ रहे है जो काफी मिलते जुलते है जैसे – प्राकृतिक खेती कार्यक्रम, जैविक खेती, शून्य बजट खेती, पारंपरिक खेती आदि है | कृषि में इन तकनीक से खेती करना प्रकृति और मानव शरीर के लिए अच्छा माना गया है |

प्राकृतिक-खेती

केंद्र सरकार के कृषि मंत्रालय के अनुसार भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति के तरह देश मे अब तक 4 लाख हेक्टेयर क्षेत्र मे यह खेती की जा रही है |

प्राकृतिक तरीकों से तैयार फसल/ उपज कम लागत के साथ मूल्यवान एवं गुणकारी होती है | आइए जानते है, देश में प्राकृतिक खेती को लेकर सम्पूर्ण जानकारी – 

आज के समय में प्राकृतिक खेती कैसे करें ?

इस खेती के साथ पशुपालन भी कुछ हिस्सा रखा जाता है, जिसमें पशुओ/ देसी गाय के गोबर और गोमूत्र को काम में लेते है | एक देसी गाय के गोबर और गोमूत्र से एक किसान 30 एकड़ जमीन पर इस तरीके की खेती कर सकता है | देसी प्रजाति के गोवंश के गोबर और गोमूत्र से जीवामृत, धनजीवामृत तथा जामन बीजार्मत बनाया जाता है |

वर्तमान की खेती से लगभग 70-75% अलग है, जिसमें खेतों की बार-बार जुताई, रसायनिक खाद, आधुनिक कृषि यंत्र, बीज उपचार, आधुनिक सिचाई, आदि का प्रयोग करना गैर माना गया है |  

भूमि की उर्वरा शक्ति को बचाए रखने हेतु फसल चक्र, हरी खाद, कंपोस्ट इत्यादि का उपयोग किया जा सकता है |

प्राकृतिक खेती के लाभ ?

  • खेतों की मिट्टी में गुणवत्ता, उर्वरता और जलधारण क्षमता में बढोतरी होती है |
  • आज की खेती में होने वाली हर साल उपज परिवर्तनशील में कमी देखने को नहीं मिलती बल्कि इस विधि से हर साल उपज बढ़ती जाती है |
  • इन कृषि क्रियाकलापों में कम लागत के कारण किसानों की आय बढ़ती है, जैसे सामाजिक-आर्थिक लाभ भी होते है |
  • खाद सुरक्षा और जलवायु परिवर्तन को सहन क्षमता पर इसके सकारात्मक परिणाम देखने को मिलते है |
  • सरकार भी इसके विस्तार हेतु अलग-अलग योजना सुविधाये ला रही है – प्राकृतिक खेती को बढ़ावा हेतु 25 करोड़ का प्रावधान

प्राकृतिक खेती का जंगल मॉडल ?

आज के समय इस खेती को विस्तारित करने और रकबा क्षेत्र को बढ़ाने में कुछ मानक परिणाम दिए गए है जो इसके बारे में पूरी जानकारी देते है | इस खेती में 1 एकड़ में 6 से 12 लाख रुपए की आमदनी संभव है | दरअसल इस खेती में पंचतरिय मॉडल लगाया जाते है | इस मॉडल में 1 एकड़ में 54 नींबू के पेड़, 133 अनार के पेड़, 170 केले के पेड़, 120 सहजन के पौधे, 120 काली मिर्च के पेड़ लगते हैं| इसके बाद हर दो  पौधे के बीच में 820 अंगूर की बेल लगेगी |

इसके साथ ही मिर्च, टमाटर, हल्दी, अदरक और मौसमी सब्जियां भी लगाई जाती है | यह सब एक ही खेत में होता है, इन सब फसलों की आमदनी साल में 6 से 12 लाख रुपए तक की जा सकती है, इसलिए इसको प्राकृतिक खेती का जंगल मॉडल कहा जाता है |

खेती का यह जंगल मॉडल हर क्षेत्र, जलवायु के अनुसार अलग-अलग रखा है जो आपको नजदीकी कृषि विज्ञान केंद से मिल सकता है | 

प्राकृतिक खेती और किसान का मित्र ‘केचुआ ?

प्राकृतिक खेती के अंदर गाय के गोबर और गोमूत्र का इस्तेमाल करते है| इसकी वजह से केंचुआ हमारा देशी ‘केंचुआ’ वहा आने लगते है, वह केंचुआ हमारी भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाता है | केंचुआ जमीन के अंदर हजारों-लाखों सुराग करता है, केंचुआ अपनी जिंदगी में 14 फीट जमीन में नीचे जाता है और फिर वापस आता है तथा नए सुराग से जाता है और नए सुराग से वापस आता है |

किसान मित्र केंचुआ एक असंख्य छिद्र करके जब बारिश होती है तो आधे या 1 घंटे बाद आपको जमीन पर पानी नहीं मिलेगा क्योंकि पानी उन छिद्रों से नीचे जमीन में चला जाता है |

रासायनिक खेती और प्राकृतिक खेती में अंतर:-

रासायनिक खेतीप्राकृतिक खेती
इस प्रकार की खेती में हम रसायनों उर्वरकों के बल पर फसलों से उपज लेते है |
वर्तमान मे 90 % क्षेत्र मे इसी विधि को अपना रखा है |
खेती का यह रूप कम समय में ज्यादा पैदावार देने मे सफल है |
यह खेती उच्च तकनीक युक्त खेती मानी जाती है |
रसायनिक उर्वरकों पर सरकार भी सब्सिडी जैसी सुविधाये दे रही है |
प्रकर्ति और मानव स्वस्थय के लिए नुकसानदायी मानी जाती है |
जैविक खाद से खेती संपन करते है- पशुओ / गाय के गोबर और गोमूत्र |
प्रकर्ति और मानव स्वस्थय के लिए फायदेमंद मानी गई है |
इन तरीकों से खेती करने से फसलों के तैयार होने मे समय लगता है |
Prakritik तरीकों को अपनाने वाले इच्छुक किसानों को सुविधाये और प्रोत्साहन करती है |
प्राकृतिक कृषि की प्रमुख कमी यही है की आधुनिकता की दौड़ मे आज के समय किसान यह खेती करना कम पसंद कर रहे है |
खेती का यह तरीका किसान ओर मानव कल्याण हेतु एक वरदान साबित हो सकता है क्योंकि लागत कम और स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है |

प्राकृतिक खेती मे लागत ?

प्राकृतिक खेती में लागत बहुत कम होती है, जब हम रासायनिक खेती करते है, तो हमारी आमदनी एक एकड़ में 50 हजार रुपए की होती है तो लगभग 25 हजार रुपए हमारे खर्च भी हो जाते है | प्राकृतिक खेती, इसमें कोई उर्वरक नहीं डाला जाता है, किसी भी तरह के रासायनिक खाद नहीं डाली जाती है |

प्राकृतिक-खेती

बाजार में बिक जाता है, आसानी से उत्पादन –

आपको शुरू-शुरू में थोड़ी इसमें बाजार में समस्या आती है, अपना माल बाहर ले जाना पड़ता है, लेकिन जैसे-जैसे लोगों को पता चलता है, कि आपने फल, सब्जियां प्राकृतिक रूप से उगाए जाते है, तो लोग खुद ही आपके पास आते है आपकी फसल देने के लिए कोई समस्या भी नहीं आती है, आपको बजार में भी नहीं जाना पड़ता है| प्राकृतिक खेती करने के बाद हर फसल की डिमांड बढ़ जाती है |

भारत में प्राकृतिक खेती के आकड़े ?

सरकार द्वारा हल ही मे जारी आकड़ों के अनुसार देश मे 4.09 लाख हेक्टेयर पर यह खेती की जा रही है | देश मे भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति के तरह आंध्र प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, झारखंड, केरल, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, ओडिशा जैसे राज्यो मे सबसे ज्यादा खेती की जा रही है |

नेचुरल खेती पर सरकार द्वारा सहायता?

परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) के तहत सरकार इस तरह से खेती करने वाले किसानों को 12,200 रुपये प्रति हेक्टेयर की आर्थिक सहायता करती है |

प्राकृतिक खेती किसान हेतु एक वरदान?

कम लागत की यह खेती गोबर और गोमूत्र पर आधारित है, इसमें खाद गोबर, गौमूत्र, केचुआ-कीट खाद, चने के बेसन, गुड़ और पानी आदि से तैयार की जाती है |फसलों का बचाव नीम और गौमूत्र जैसे कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है |

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