Last Updated on January 26, 2024 by krishisahara
तरबूज की नर्सरी | तरबूज की नर्सरी कैसे तैयार करें | तरबूज का पौधा | तरबूज उगाने की विधि | तरबूज का पौधा कैसा होता है | तरबूज tarbuj ki nursery | Watermelon nursery preparation in hindi
तरबूज की फसल काफी कम समय में तैयार होने के साथ-साथ अच्छी कमाई भी देती है | कई प्रगतिशील किसान तरबूज की खेती करने से पहले तरबूज के पौधे नर्सरी के द्वारा तैयार करते है | इन नर्सरी में तैयार पौधे से खेती में अनेक प्रकार से फायदा साबित होता है, तो आइए किसान भाइयों जानते है तरबूज की पौध तैयार करने तकनीक, उन्नत बीज, प्रमुख कीट रोग, खाद उर्वरक आदि के बारे में संपूर्ण जानकारी –
तरबूज का पौधा ?
यह मुख्य रूप से एक लता/बेल प्रकार का पौधा होता है, जिसकी आयु 90 से 120 दिन तक की होती है | उन्नत खेती के तौर पर तरबूज की खेती करने पर सीधी खेत में बुवाई की तुलना में पहले नर्सरी तैयार कर लेनी चाहिए | तरबूज का पौधा तैयार कर लेने से फसल कई प्रकार की बीमारियों और रोग-कीटों से बचा सकती है |
तरबूज की नर्सरी कैसे तैयार करें ?
खेती के सफर को सफल बनाने के लिए तरबूज की को काफी देखभाल और सावधानियां के साथ तैयार करना पडता है| छोटे पौधों में डंपिंग ऑफ डार्क, जड़ गलन, पीली पत्ती जैसी कहीं रोग-कीटों का सामना करना पड़ता है जो देखभाल और सावधानियों के द्वारा निजात पा सकते है |
यह खेती अधिक लागत के साथ तैयार होने वाली खेती है इसलिए, आगे जाकर नुकसान से बचने के लिए किसान पहले से ही तरबूज की नर्सरी में पौधे तैयार कर लेना चाहिए, जो इस प्रकार है –
तरबूज नर्सरी तैयार में मुख्य रूप से इनमें चीजों की जरूरत पड़ती है – | – कोको पीट (5 kg) – केंचुआ खाद (2-3 kg) – परलाइट (1 kg) – वर्मी कुलाइट (1 kg) – सड़ी हुई गोबर की खाद (1-2 kg) – प्लांट ट्रेन सीट/प्रोसीट |
तरबूज का बीज उपचारित ?
नर्सरी तैयार करने से पहले अच्छी किस्में क्वालिटी के बीजों का चयन करना चाहिए बुवाई से पहले बीजों को अच्छे रूप से उपचारित करना आवश्यक है, उपचारित करने के लिए कार्बेंडाजिम मैनकोज़ेब दवा का इस्तेमाल कर सकते है |
तरबूज उगाने की विधि ?
- नर्सरी की तैयारी से लेकर खेत में बुवाई तक, पौधो को छायादार स्थान का चयन करना है |
- कोकपीट यदि पैकिंग के रूप में है तो उसे आधे घंटे के लिए पानी में भिगोकर रखेंगे, अच्छी तरह से घुलकर तैयार हो जाने के बाद इसे कोको पीट को थोड़ा हल्का सूखने के लिए रख दें |
- अच्छी नमी वाले कोकोपीट में बाकी ऊपर दिए गये अनुपात में खाद को अच्छे से मिला लेना चाहिए |
- अब तैयार कोको पीट के खाद को प्लांट ट्रे में भरकर सामान्य रूप से दबा देना चाहिए |
- अब इनमें हर एक में एक एक करके बीज लगाते है |
- बीज लगाने के बाद छिडकाव जग या स्प्रे पम्प की सहायता से हर दो दिन में पानी दे देते है |
तरबूज पौध में लगने वाले प्रमुख किट-रोग ?
चूर्णी फफूँद रोग –
फफूंदी रोग से ग्रसित पौधो की पत्तियों और तनों पर सफेद या धुंधले रंग के धब्बे लगना शुरू होते है | यदि इसका 2 सप्ताह में इलाज नही करें तो यह पत्तो पर पाउडर के रूप में फैलता जाता है और पूरी फसल में फैल जाता है | इस रोग में बेल की पत्तिया धीरे-धीरे गिरने लगती है और फलों का आकार भी कम होता जाता है |
चूर्णी फफूंदी रोग – सबसे बड़ी सावधानी में बीज बोते समय उपचारित करके बोना चाहिए, यदि यह रोग दिखाई दे तो रोगी पौधे को उखाडकर जला या खेत से बहार भूमि में दबा देना चाहिए |
रासायनिक उपचार दवा में कैलिक्सीन 1ml/लिटर हर 4 दिन के अन्तराल में छिडकाव करना चाहिए |
पिला मोजैक वायरस रोग –
मोजेक रोग भी फसल का भारी नुकसान पहुंचा सकता है, इस रोग में शुरूआती समय पौधों की पत्तियों में पीले चित्तेदार धब्बों से शुरु होता है, जो अधिक फैलने पर पूरी फसल पिली होकर सिकुड़ने लगती है | यह रोग ज्यादातर बिना उपचारित बीजो के कारण या एफीड कीट से होता है |
फसल को इस रोग से बचाने के लिए – विषाणु मुक्त बीज से बुवाई तथा रोगी पौधों को खेत से निकालकर जलाकर नष्ट कर देना चाहिए |
रासायनिक दवा में – डाईमेथोएट 1 मि.ली. प्रति लीटर पानी में घोल हर 7-7 दिन के अन्तराल में 2 सप्ताह तक छिड़काव करें |
मृदुरोमिल फफूंदी कवक रोग –
यह रोग अधिक आद्रता वाले क्षेत्रों और 20-25 डिग्री तापमान होने पर फैलना शुरू करता है | इस रोग में लताओ के पत्ते पीले पड़ना दिखाई देते है | पीले पतों में कवक फफूंदी फैलता है और फसल सिमटना शुरू हो जाती है |
मृदुरोमिल फफूंदी कवक रोग का उपचार – बुवाई से पहले बीज उपचार मेटलएक्सिल नाम कवकनाशी से 3 ग्राम/किलों बीज के हिसाब से करें | खड़ी फसल में यह रोग दिखे तो, मैंकोजेब 2.5 ग्राम/लीटर पानी में घोल कर छिड़काव कर सकते है |
लाल कीट रोग –
कुम्हड़ा का लाल कीट के नाम से भी जाना जाता है, यह एक प्रकार का भूमि में रहने वाला कीड़ा है, जो अधिक नमी और आद्र मौसम में फसलो की जडो पर वार करता है | यदि इस किट का प्रकोप ज्यादा फैल जाता है तो पूरी फसल चोपट हो जाती है, इसलिए हर पिली पौध को उखाड कर जड़ की पहचान कर लेनी चाहिए |
देसी उपचार के रूप में सुबह के समय सुखी राख का छिडकाव करना चाहिए रासायनिक दवा में मैलाथियान 50 EC 2.5 मिली/लीटर पानी का घोल बनाकर 15 दिन के अन्तराल में 2 छिड़काव करें |
फल मक्खी रोग –
फल मक्खी का लार्वा फूलों और छोटे फलों को नुकसान पहुँचाता है | इस मक्खी के द्वारा लता/बेल के जिस भी भाग पर अंडा देती है वहा से सडन शुरू हो जाती है, जो फल, पत्ती, और शाखा को गलाकर खराब कर देती है | यह रोग छोटे पौधो से लेकर पूरी फसल तक प्रभावी हो सकता है |
उपचार – इस रोग से बचने के लिए नीला और पिला ट्रेप पेपर लगाकर रखना चाहिए | रासायनिक दवा के रूप में मिथाइल इंजीनॉल या सिनट्रोनेला तेल या एसिटिक अम्ल या लेक्टिक एसिड का घोल बनाकर रख सकते है |
तरबूज नर्सरी की देखभाल/सावधानियां ?
- सावधानी के रोग सर्वप्रथम किसान को कोकोपीट को ज्यादा दबाव के साथ ना भरें |
- ट्रे में बीजों को एक-एक करके ही लगाएं और भेज ट्राई के होल से बीचो-बीच लगाना चाहिए, जिससे पौधा निकालते समय कोको पीट उसके साथ जुड़ा रहे |
- बीज लगाने के बाद ज्यादा पानी ना दें नहीं तो जड़ गलन और बीज जैसी समस्याएं हो सकती है |
- अंकुरित होकर छोटे पौधे में दो पति आ जाए इसमें माइक्रोन्यूट्रिएंट्स देना जरूरी हो जाता है, जिसमें आपके सभी कंपनी का माइक्रोन एड्रेस दे सकते है |
- अंकित होने के बाद में नर्सरी के पास में यलो और ब्लू ट्रेप पेपर का जरूर लगा दे, पीला और नीला ट्रेप दोनों जगह आवश्यक है |
तरबूज की नर्सरी लगाने के फायदे?
– नर्सरी से तरबूज की उच्च क्वालिटी की पौध तैयार कर सकते है |
– छोटे पौधो को अच्छी खाद-उर्वरक आसानी से लगती है जिससे खुले खेत की तुलना में उर्वरक और खाद कम लगती है |
– कम जगह छोटे पौधो की देखरेख करना आसान होता है |
– कम समय में ज्यादा क्षेत्र के पौधो को लगाकर तैयार कर सकते है |
तरबूज कौन से महीने में उगाया जाता है?
तरबूज की खेती दिसम्बर माह से लेकर मार्च तक की जाती है और इसका सही उचित समय मध्य फरवरी माह मे माना जाता है |
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