Last Updated on November 4, 2024 by krishisahara
दुनिया में गरीब हो या अमीर सभी की दाल-रोटी में, दाल की व्यवस्था, इसी चने की उन्नत किस्मों से होती है | चना फसल मुख्यतः ठंडे जलवायु की फसल है, जो बारानी भूमि/बिना सिंचाई व्यवस्था में तैयार की जाती है| हमारे भारत देश में चने की खेती मुख्य रूप से राजस्थान, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और बिहार आदि राज्यों में की जाती है |
आज हम बाते करेंगे इसी और चने की टॉप उन्नत किस्मों के बारे में जो उपज उत्पादन में अपना बेहतर योगदान देती आ रही है –
टॉप 10 चने की उन्नत किस्में ?
किसान भाइयों बता दे की चने की उन्नत किस्मों में टॉप प्रचलित विशाल, 315, 202, चना दिग्विजय, फूले, विजय चना वैरायटीयां आदि है | इन किस्मों को लगाकर किसान सामान्य बीजों की तुलना में अच्छा उत्पादन और लाभ कमा सकते है –
315 चना की वैरायटी –
इस किस्म को JG-315 के नाम से भी जाना जाता है | यह वेराइटी अपने अच्छी पैदावार के कारण जानी जाती है – जो 28 से लेकर 32 क्विंटल/हैक्टेयर तक उपज ली जा सकती है | JG-315 चने की फसल तैयार होने में 110 से 125 दिनों का समय लगता है | ध्यान रखें किसान भाई इसमें 2 सिंचाई करने पर ही अच्छा पैदावार में असर देखा जा सकता है |
विजय चना वैरायटी –
इस किस्म की बुआई का समय अक्टूबर से नवंबर के मध्य की जाती है | विजय चने वैराइटी के पौधे की जड़े ज्यादा गहरी होती है, जो फसल को सिंचाई से दूर करती है | इस किस्म की खास विशेषता यह है की, इसकी फसल को असिंचित खेती में भी उत्पादन दर 25 कुंटल/हेक्टेयर तक लिया जा सकता है | इसे ज्यादातर राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश आदि असिंचित स्थति वाले क्षेत्रों में बुवाई की जाती है |
हरा चना बीज वैभव –
अधिक ठंड, एव सूखे जैसी विषम परिस्थति में तैयार होने वाली किसान अनेक प्रकार के रोगों के प्रति काफी प्रतिरोधी किस्म है | औसत उपज पैदावार की बात करें तो, 13 से 16 क्विंटल / हेक्टेयर तक ली जा सकती है | चने की वैभव किस्म को पकने में 110 से 120 दिनों तक का समय लगता है |
202 चना की वैरायटी –
इस किस्म की मुख्य विशेषता अधिक ठंड/पाले की समस्या को सहन करने के लिए तैयार किया गया है | मध्य और उतरी भारत के किसान इस वैराइटी की खेती करना अधिक पसंद करते है | 202 चने के बीज की पैदावार 22 से लेकर 26 क्विंटल/हेक्टेयर तक देखी जाती है | इस फसल को पकने में 120 से 130 दिनों तक समय लगता है | बेहतर परिणामों के चलते महाराष्ट्र, गुजरात, मध्यप्रदेश में इस किस्म को सर्वोधिक बोया जा रहा है |
GNG 1581 चना –
राजस्थान के लिए मुख्यतः अनुमोदित इस किस्म को जी.एन.जी. गणगौर चना बीज के नाम से भी जाना जाता है | इस किस्म की फसल उच्च उत्पादन देने वाली फसल है, इस किस्म के पौधे की औसत ऊंचाई 40 सेंटीमीटर तक होती है | पैदावार की बात करें तो, 14 से 16 कुंटल प्रति एकड़ तक लिया जा सकता है |
विशाल चने की किस्म –
चने की सभी वैराइटियों में से विशाल चने की किस्म को सर्वगुण सम्पन्न किस्म माना जाता है | इसको पकने में 110 से 120 दिनों का समय लगता है | इस किस्म के दाने हल्के से पीले होते है और बीजों/दानों का आकार बड़ा होता है | विशाल चने की किस्म से प्रति हेक्टेयर उत्पादन पैदावार की बात करें तो – 35 क्विंटल के आस-पास ली जा सकती है |
चना दिग्विजय (फुले 9425-5) –
दिग्विजय फुले वैराइटी की बुआई अक्टूबर से नवंबर के मध्य में होती है | लगभग 40 क्विंटल/हेक्टेयर की पैदावार क्षमता की विशेषता के कारण जानी जाती है, यदि इस वैराइटी की अच्छी देखरेख की जाती है, तो 20% अधिक उत्पादन क्षमता रखती है | किस्म को पकने में 90 से 110 दिनों का समय लगता है |
चना फूले जी-08108 (फूले विक्रम) –
मुख्यतः महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश के लिए तैयार की गई चना किस्म है | इस किस्म के पौधे की ऊंचाई 20 से 30 सेंटीमीटर तक की होती है और इसके पौधे एक दम सीधे होते है | इसकी फसल 100 से 110 दिन में पककर तैयार हो जाती है | उत्पादन पैदावार की बात करें तो, 25 से 30 क्विंटल/हेक्टेयर तक की पैदावार ली जा सकती है |
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चने की बीज दर क्या रखनी चाहिए ?
चने की बुआई के समय आपको चने का दर 30 से 45 किलोग्राम प्रति बीघा रखना है, यदि आप दर पर चने की बुआई करते है, तो आपकी फसल घनी/गहरी होगी |
किसान भाई ध्यान रखें – बीज बुवाई की दर भी आपके उपज उत्पादन को प्रभावित करती है, उत्पादन दर, आपके खाद, सिंचाई और खरपतवार, जलवायु, मौसम आदि पर भी निर्भर रहेगी |
चने की अच्छी पैदावार के लिए क्या करें ?
- यदि आप चने की अच्छी पैदावार प्राप्त करना चाहते है, तो आपको बुआई के समय चने के सही बीज का चयन करना होगा |
- खेतों की अच्छी बुवाई के साथ, खाद-उर्वरक देकर तैयार करना चाहिये |
- आपको हमेशा चने के बीज का चयन आपने क्षेत्र के जलवायु के अनुसार करना है |
- सिंचाई वाली किस्मों में सिंचाई का विशेष ध्यान रखें |
- प्रत्येक 15 दिनों के अंतराल में खेत से खरपतवार निवारण काम करना चाहिए |
- अधिक मात्रा में रसायनिक खाद को नहीं देना चाहिए |
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